Wednesday, August 20, 2008
जो भी मिला अधूरा मिला
खुशियाँ ही मिली न पूरी न गम ही पूरा मिला |
जब भी मिला जो भी मिला अधूरा ही मिला ||
लोंगो ने सींच कर पानी से गुलों को बना लिया गुलशन |
हमने खून और पसीने भी बहाया तो कोई गुल न खिला ||
देकर धोका लोग ये कैसे भरोसा बड़ा लेते हैं |
करके हजारो बफाएं, हमें कभी इक बफा का सिला न मिला ||
अब तो रोती है इक आँख और दूसरी हंसती है |
अपनी मुलाकातों का ये क्या हो गया है सिलसिला ||
जो ख़ुद मैं भरी आग है , क्या कम जलता हूँ|
ओ दूर से आती याद अब और न जला ||
मोसमे पतझड़ है कि हूँ सूखा हुआ सा |
बस अब टूट के गिर जाऊंगा जो और हिला ||
जो तेरी मर्जी ले तू भी करले पूरी |
न शिकायत करेगे हम किसी से , न ही होगी हमें तुझसे कोई गिला||
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अपनी कलम से
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5 comments:
bhut sundar rachana. ati uttam.
मोसमे पतझड़ है कि हूँ सूखा हुआ सा |
बस अब टूट के गिर जाऊंगा जो और हिला ||
क्या खूब कहा दोस्त....
जो ख़ुद मैं भरी आग है , क्या कम जलता हूँ|
ओ दूर से आती याद अब और न जला ||
मोसमे पतझड़ है कि हूँ सूखा हुआ सा |
बस अब टूट के गिर जाऊंगा जो और हिला ||
wah its fabulous
आपकी रचनाओं में भाव के साथ-साथ तुक्बन्दी बहुत अच्छी है | thodee mehnat aur karen .
भाव के साथ-साथ मनन आप बहुत आगे जाजेंगे | मेरी शुभकामनाएं |
cha gya ladke.......bhut badiya.....
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