Saturday, July 24, 2010

मैं और तुम

मन के दरिया मैं मासूम सी लहर उठी है |

पतझड़ मैं उड़ते पत्तों सी तुम यादों के आंगन को भर जाती हो ||

मैं कलियों को चूमता हूँ तुम्हे सोचकर ,और

तुम मुझे सोचकर बालों मैं फूलों को सजाती हो |


मुझे आसमान पे बस एक चांदनी नज़र आती है

तुम चाँद के दाग पर बस नजरें टिकती हो||


मैं पुकारता हूँ की सारा जहाँ सुन सके |

तुम कानों मैं हल्के से बुदबुदाती हो ||


मैं नुमाइश करता हूँ पागलपन की हद तक

और तुम चुप रहती हो छुपाती हो ||


मैं सब कहता हूँ पर जता नहीं पता |

और तुम कुछ नहीं कहती फिर सब जताती हो ||


कोन हो तुम , कोई तुम्हारा नाम तो पूछे |

क्यों किसी अनजान को इतना सताती हो ||



Saturday, July 3, 2010

यूँ न देखो

रंग -ए- सूरत ये झूट का नक़ाब उतार के देखो ..
अब मेरे बिन इक लम्हा गुज़ार के देखो ..

गुमनाम न समझो कुदरत के करिश्मों को .
इल्म की रोशनी है अन्दर ही , इसे बाहर न देखो |

वो जो इक तेरे दर पे बार - बार आता है .
हो तुम भी उस के दीवाने , उसको ही तलबगार न देखो .

वो जो देखता है सब को ऊपरवाला जिसे कहते है .
उसे बैठा कहीं किसी मज़ार पे न देखो ।
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