रंग -ए- सूरत ये झूट का नक़ाब उतार के देखो ..
अब मेरे बिन इक लम्हा गुज़ार के देखो ..
गुमनाम न समझो कुदरत के करिश्मों को .
इल्म की रोशनी है अन्दर ही , इसे बाहर न देखो |
वो जो इक तेरे दर पे बार - बार आता है .
हो तुम भी उस के दीवाने , उसको ही तलबगार न देखो .
वो जो देखता है सब को ऊपरवाला जिसे कहते है .
उसे बैठा कहीं किसी मज़ार पे न देखो ।
Saturday, July 3, 2010
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