Sunday, September 27, 2009

इज़हार



इक बार पहले भी मुझे धोका बहर ये दे चुके
की दोस्ती भी दिल की अपनी दोस्तों मौसम से है //

वो जो कभी कर सका , वो आज लिख चला हूँ मैं
की आज वो इज़हार लिखना ,लिखने की कसम पे है //

ख़मोश लफ्जों से मुझे कुछ कुछ बुदबुदाना याद है
किसी की याद मैं लिखी ग़ज़ल ,वो मौसम पुराना याद है //

लिखते -लिखते आज मेरे हाथ कुछ नम से हैं
लफ्ज उस वक्त भी कुछ कम से थे , इस वक्त भी कुछ कम से हैं //
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