Wednesday, August 5, 2009

दिल मेरा मुझपे आ रहा है



क्या समां छा रहा है की दिल मेरा मुझपे आ रहा है |
क्या बात हुई की ख़ुद ही मैं गुनगुना रहा है ||

आइना मुझसे मेरी पूरानी सी सूरत मांगता है /
जवान जिंदादिल मुझसे मेरी पुरनी मूरत मांगता है //

अपने आँचल से उजाला ढक लेती है, चांदनी रात |
कि कपड़े बदलने से नही बदलते हालात //

बदलते मौसम मैं तन्हाई की शाम कहाँ बदलती है |
ये हिज्र शाम रोज़ गमेशब् मैं ढलती है ||


10 comments:

Mithilesh dubey said...

सुन्दर रचना। बधाई

चन्दन कुमार said...

lajawab hai

ओम आर्य said...

बेहद खुब्सूरत ......वाह क्या बात है .....बधाई

श्यामल सुमन said...

अपने आँचल से ढक लेती है, चांदनी रात |
की कपड़े बदलने से नही बदलते हालात //

अच्छी पंक्तियाँ हैं। मुझे लगता है "की" के बदले "कि" होना चाहिए। हो सके तो देख लीजियेगा।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

प्रवीण पराशर said...

श्यामल सुमन ji sujhab k liye dhnyanbaad

vishnu-luvingheart said...

bahut khoob...badhai...

हरकीरत ' हीर' said...

बदलते मौसम मैं तन्हाई की शाम कहाँ बदलती है |
ये हिज्र शाम रोज़ गमेशब् मैं ढलती है ||


Bahut khoob ....!!

Vinay said...

सुन्दर सृजन
--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम

Arshia Ali said...

सुंदर विचार, सुंदर अभिव्यक्ति।
{ Treasurer-S, T }

प्रिया said...

bas u hi aapke blog tak pahuch gai...rachna to sunder hai saath hi ek freshness hai blog par .....congrats u

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