Monday, October 6, 2008
मन की बात
चुप रहें होंट ,कोई आह न निकले ,न कागज़ पे किसी स्याही से लिखा जाए
जो हर साँस कहती है, वो मन की बात ||
कैसे मुस्कुराते है गम ,कोई चीज़ जो छुप नही सकती
चेहरे की शिकन कहती है ,वो मन की बात ||
हुआ खाली मेरा समंदर ,अब आँसू नही निकलते ,
बस पलकों पे नमी रहती है ,कहती है ,वो मन की बात ||
लब्जों की कमी रहती है , हर बात मैं इशारे कहते हैं ,
बखूबी हर नजर कहती है , वो मन की बात ||
कहीं समन्दर तो कही सूखी जमीन है ,इस रेत को भिगो दे लहर कोई ,
हर लहर मैं उठी मोज कहती है । ,वो मन की बात
बिखरे हुए फूल, रुकी हुई हवा ,लोटती हुई लहर ,
कोन सी बहार ऊम्र्भर रहती है क्यूं बार -बार कहती है.वो मन की बात ||
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अपनी कलम से
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4 comments:
आप की कलम में वो ताकत है जो हिन्दी कविता प्रेमी कोअपनी ओर खीच सकती है । बधाई । लिखते रहिये
बहुत ही खूब और सुंदर।
बहुत खूब लिखी है आपने मन की बात...बेहतरीन प्रस्तुति...
नीरज
बहुत बढ़िया..
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