Sunday, September 27, 2009

इज़हार



इक बार पहले भी मुझे धोका बहर ये दे चुके
की दोस्ती भी दिल की अपनी दोस्तों मौसम से है //

वो जो कभी कर सका , वो आज लिख चला हूँ मैं
की आज वो इज़हार लिखना ,लिखने की कसम पे है //

ख़मोश लफ्जों से मुझे कुछ कुछ बुदबुदाना याद है
किसी की याद मैं लिखी ग़ज़ल ,वो मौसम पुराना याद है //

लिखते -लिखते आज मेरे हाथ कुछ नम से हैं
लफ्ज उस वक्त भी कुछ कम से थे , इस वक्त भी कुछ कम से हैं //

4 comments:

Asha Joglekar said...

Sunder gajal. par presentation yani ki likhane ka format thoda aur achcha hona chahiye. labj ke jagah shayad lafj hona chahiye.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना!!

Sumit Pratap Singh said...

दशहरे की शुभकामनायें यूं ही
अच्छी-२ रचनाओं का निर्माण करते रहें...

निर्मला कपिला said...

ख़मोश लफ्जों से मुझे कुछ कुछ बुदबुदाना याद है
किसी की याद मैं लिखी ग़ज़ल ,वो मौसम पुराना याद है
laa
लाजवाब अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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