Friday, December 11, 2009

मतवाली कलि



था भवरा नादाँ मगर फ़िर भी इंकार वो करता था /
भन-भन करता बाग़ों मैं कलियों के पीछे फिरता था //

अधखिली थी कलि मगर, थी कलि बड़ी मतवाली /
कहती है खिलने तो ,देखो सागर है मेरा खाली//

भवरें ने सागर को भरने की फ़िर हर कोशिश कर डाली /
हो उदास भवरें ने फ़िर सागर मैं आँखों से एक बूँद मिला दी //

कहे कलि खिलकर भवरें से मिलकर ,

था बागवान ने सींचा हरपल, थी इसीलिए मतवाली /
था सागर मेरा भरा हुआ ,बस एक बूँद थी खाली //

भवरा वो ले गया उड़कर खिली कलि मतवाली /
जो बड़े जतन से सींच -सींच कर बागवान ने पाली //

Sunday, September 27, 2009

इज़हार



इक बार पहले भी मुझे धोका बहर ये दे चुके
की दोस्ती भी दिल की अपनी दोस्तों मौसम से है //

वो जो कभी कर सका , वो आज लिख चला हूँ मैं
की आज वो इज़हार लिखना ,लिखने की कसम पे है //

ख़मोश लफ्जों से मुझे कुछ कुछ बुदबुदाना याद है
किसी की याद मैं लिखी ग़ज़ल ,वो मौसम पुराना याद है //

लिखते -लिखते आज मेरे हाथ कुछ नम से हैं
लफ्ज उस वक्त भी कुछ कम से थे , इस वक्त भी कुछ कम से हैं //

Wednesday, August 5, 2009

दिल मेरा मुझपे आ रहा है



क्या समां छा रहा है की दिल मेरा मुझपे आ रहा है |
क्या बात हुई की ख़ुद ही मैं गुनगुना रहा है ||

आइना मुझसे मेरी पूरानी सी सूरत मांगता है /
जवान जिंदादिल मुझसे मेरी पुरनी मूरत मांगता है //

अपने आँचल से उजाला ढक लेती है, चांदनी रात |
कि कपड़े बदलने से नही बदलते हालात //

बदलते मौसम मैं तन्हाई की शाम कहाँ बदलती है |
ये हिज्र शाम रोज़ गमेशब् मैं ढलती है ||


Sunday, July 26, 2009

फ़िर क्यूं दिल घबराता है


सपने कांच टुकडों से पलकों को घायल करते हैं
सुखी आँखों मैं फ़िर आंसूं बनकर क्या बहता है //

रोती हैं आँख या ये दिल रोता है
कैसा रिश्ता ये दिल का पलकों से होता है //

कोन से झरने का पानी ये मन की प्यास बुझाता है /
चोट कही न आए नज़र फ़िर कोन ये दर्द जगाता है //

है नादाँ , हटी ये बात किसी की न माने /
फ़िर भूल के सबकुछ खुश हो जाए कोन इसे समझाता है / /

पा लेता है सबकुछ जो चाहे वो कर के माने /
मिल जाता है सबकुछ , तो फ़िर क्यूं दिल घबराता है //

खा लेता है कस्में फ़िर तोड़ उन्हें वो जाता है /
मेरी बात सही कहता फ़िर क्यूं पीछे पछताता है //

साथ चले दुनिया सारी और भीड़ ही भीड़ नज़र आए /
क्यूं डरता है कभी- कभी , फ़िर ये किस से घबराता है //

Tuesday, July 7, 2009

सपनो की रेत


मजबूर हम इतना हुए की दूर तुमसे हो गए/
पलकों पे जो तेरे ख़ाब थे, वो आंसुओं मैं बह गए//

क्यूं नज़ारे खामोश हुए और फिजायें गुमसुम चली जा रही है/
मेरी सदा जो कह सके ,वो लब्ज़ गूंगे हो गए , //

अब थामकर किस्मत का हाथ मैं सफर पर चल पड़ा /
मेने बनाये थे जो मंजिलों के रास्ते, चलते -चलते रास्ते मैं, रास्ते बदल गए //

प्यार के मोती सभी भरे थे दोनों हाथ से ,था आसमान भी भर लिया /
मुट्ठी खुली जो एक दिन , हाथों मैं हाथ रह गए //

कल थी महफिलों की शाम, भीड़ ही भीड़ बेशुमार थी/
आज मेरा साया और कुछ यादों के साये रह गए //

सपनो की रेत से अपने ही आँचल मैं घरोंदे बना लिए /
खुशियों के आँसू आए तो सरे घरोंदे डाह गए //

सुनते -सुनते दास्ताँ किसी की ,अपनी सी लगी/
कुछ अपनी सुनाई तुझे तो , यार तेरी कह गए //

आज तक मैं हूँ मुझे मुझ पे बड़ा गुमान था /
ख़ुद से नज़र मिली तो ख़ुद बेजुबान हो गए //

Wednesday, March 25, 2009

विरहन


एरी सखी का से कहों मन की बतियाँ
सूने मोरे दिन पुरे , सूनी मोरी रतियाँ |
तोसे मिलूँ तो कहूँ मैं विरहा की बातें
कसे काटें मोरे दिन कैसे मोरी रातें |
सुनरी पवन अगर पी तुझको मिले
कहना भली हूँ पर जी न लगे|

बरसेगा सावन आग मन मैं लगेगी
तरसेगी विरहा प्यासी , बूंदों से जलेगी |

Tuesday, February 10, 2009

फ़िर वही पुरानी बात चली


ढली शुहानी शाम कहीं तो
वही पुरनी बात चली ||

थी दूर गगन के आंचल मैं
वो चाँद रात के साथ पली ||

सुबह ओस की बूंदों के संग
मुझे कली के पास मिली ||

ले हाथों मैं हाथ मेरा वो
कुछ पल मेरे साथ चली ||

फ़िर गुमसुम -गुमसुम ,गुपचुप -गुपचुप
खामोशी से बात चली ||

बात बढ़ी , बढ़ी धड़कन
धड़कन धड़कन के साथ चली ||

फ़िर छोड़ मुझे वो फूल कली
पुरे कर अपने अरमान चली ||

रोक ना पाया मैं उसको
वो किन अपनों के साथ चली ||

फ़िर यादों की पुरवाई चली
वो साल चली दर साल चली ||

अब ढली सुहानी शाम कही तो
वही पुरानी बात चली..||

Friday, January 30, 2009

नजदीकियों से डर लगता है

अंधेरों से नही उन उजालों से डर लगता है ,
क्यूंकि उन्हे देखर मेरा चाँद कहीं जा छुपता है !!

मुझे बातों से नही खामोशियों से डर लगता है ,
कोन सी बात है, जो वो अपने ही तक रखता है !!

मुहं फेरकर कोई जाए तो क्यूं कोई शिकबा रहे ,
रूबरू होकर, न कोई सताए , डर लग ता है .!!

नही लगता कोई डर जो लोग दूर से मुकुराते हुए निकले ,
नजदीकियां कोई बढाये तो डर लगता है !!

जमाना जान पे भी हो आमादा , तो कोई डर नही ,
बात जब प्यार की आ जाए तो डर लगता है !!

Tuesday, January 6, 2009

पक्के इरादे से नही

किसी पक्के इरादे से नही आसमान को केबल हम मन से छु सकते हैं ." महान सूफी संत रूमी "
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