Friday, January 30, 2009

नजदीकियों से डर लगता है

अंधेरों से नही उन उजालों से डर लगता है ,
क्यूंकि उन्हे देखर मेरा चाँद कहीं जा छुपता है !!

मुझे बातों से नही खामोशियों से डर लगता है ,
कोन सी बात है, जो वो अपने ही तक रखता है !!

मुहं फेरकर कोई जाए तो क्यूं कोई शिकबा रहे ,
रूबरू होकर, न कोई सताए , डर लग ता है .!!

नही लगता कोई डर जो लोग दूर से मुकुराते हुए निकले ,
नजदीकियां कोई बढाये तो डर लगता है !!

जमाना जान पे भी हो आमादा , तो कोई डर नही ,
बात जब प्यार की आ जाए तो डर लगता है !!

8 comments:

अनिल कान्त said...

बहुत खूब लिखा है ...अंधेरों से नही उजाले से डर लगता है ...सुंदर

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Anonymous said...

bahut khubsurat rachana badhai

रंजू भाटिया said...

मुहं फेरकर कोई जाए तो क्यूं कोई शिकबा रहे ,
रूबरू होकर, न कोई सताए , डर लग ता है .!!

बहुत खूब ...

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

.भावनाए काबिले-ग़ौर हैं

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा रचना है।

मुहं फेरकर कोई जाए तो क्यूं कोई शिकबा रहे ,
रूबरू होकर, न कोई सताए , डर लग ता है .!!

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लिखा...

नीरज गोस्वामी said...

जमाना जान पे भी हो आमादा , तो कोई डर नही ,
बात जब प्यार की आ जाए तो डर लगता है !!
वाह...वाह वा...बहुत खूब भाई...
नीरज

Unknown said...

style hai bhai aapka sahi mein bahut acha likha hai

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