Tuesday, February 10, 2009
फ़िर वही पुरानी बात चली
ढली शुहानी शाम कहीं तो
वही पुरनी बात चली ||
थी दूर गगन के आंचल मैं
वो चाँद रात के साथ पली ||
सुबह ओस की बूंदों के संग
मुझे कली के पास मिली ||
ले हाथों मैं हाथ मेरा वो
कुछ पल मेरे साथ चली ||
फ़िर गुमसुम -गुमसुम ,गुपचुप -गुपचुप
खामोशी से बात चली ||
बात बढ़ी , बढ़ी धड़कन
धड़कन धड़कन के साथ चली ||
फ़िर छोड़ मुझे वो फूल कली
पुरे कर अपने अरमान चली ||
रोक ना पाया मैं उसको
वो किन अपनों के साथ चली ||
फ़िर यादों की पुरवाई चली
वो साल चली दर साल चली ||
अब ढली सुहानी शाम कही तो
वही पुरानी बात चली..||
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अपनी कलम से
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7 comments:
bahut sunder rachna hai saral sahaj sunder bhavavyakti bdhaI
सुन्दर प्रस्तुति...
फ़िर गुमसुम -,गुपचुप -
खामोशी से बात चली ||
बहुत सुंदर लिखा है आपने
Rachnayen saral, sundar aur bhavuk hai....mere blogpe apnee jeevanee likh rahee hun...ek sailab hai, ek toofaan hai, jise sametnaa chah rahee hun....par zabardast avhaan hai....
zaroor aayiga..snehsahit nimantran..
अब ढली सुहानी शाम कही तो
वही पुरानी बात चली..||
bhot sunder ...!!
Khamoshee se baat chalee..........ab dhali suhani shaam kahin to....vahee puranee baat chalee....
Behad sunder rachana....gahrai se bharee....
keep it up.....
बात बढ़ी , बढ़ी धड़कन
धड़कन धड़कन के साथ चली ||
फ़िर छोड़ मुझे वो फूल कली
पुरे कर अपने अरमान चली ||
रोक ना पाया मैं उसको
वो किन अपनों के साथ चली ||
फ़िर यादों की पुरवाई चली
वो साल चली दर साल चली ||
अब ढली सुहानी शाम कही तो
वही पुरानी बात चली..||
क्या बात है दोस्त .खूब कहा ...
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