Saturday, July 26, 2008

न नींद नैना, ना अंग चैना

अमीर खुसरो की ये कविता हिन्दुस्तानी ज़बान में कविता की पैदाइश मानी जाती है। ये कविता फारसी, अवधी और ब्रज भाषा के मेल से बना है। इसके पीछे एक खास मकसद था। उस समय दरबार और अमीर ओ उमरा की भाषा फारसी थी और सड़क कि भाषा अवधी और ब्रज। आये दिन दोनों में बहस होती रहती थी कि मैं बड़ा तो मैं बड़ा। तभी खुसरू ने ये कवीता लिखी जिसमे ठेठ फारसी के साथ ठेठ अवधी और ब्रज भाषा भी थी। इसी का परिष्‍कृत रूप आगे चल के हिन्दुस्तानी बना। तब न ये हिन्दुओं कि भाषा थी न ही मुसलमानों की।translation, मियां मुहम्मद रहमान का किया हुआ।
ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां।

कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां।।

शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़
वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह।

सखि पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां।।

यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू
ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं।

किसे पडी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियां।।

चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान
हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह।

न नींद नैना, ना अंग चैना
ना आप आवें, न भेजें पतियां।।

बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर
कि दाद मारा, गरीब खुसरौ।

सपेट मन के, वराये राखूं
जो जाये पांव, पिया के खटियां।।

o not overlook my misery by blandishing your eyes,
and weaving tales; My patience has over-brimmed,
O sweetheart, why do you not take me to your bosom.
Long like curls in the night of separation,
short like life on the day of our union;
My dear, how will I pass the dark dungeon night
without your face before.
Suddenly, using a thousand tricks, the enchanting eyes robbed me
of my tranquil mind;
Who would care to go and report this matter to my darling?
Tossed and bewildered, like a flickering candle,
I roam about in the fire of love;
Sleepless eyes, restless body,
neither comes she, nor any message.
In honour of the day I meet my beloved
who has lured me so long, O Khusro;
I shall keep my heart suppressed,
if ever I get a chance to get to her trick.

Sunday, July 6, 2008

अमीर खोसरु कविता

आंखें फ़ेरकर और कहानियां बना कर यूं मेरे दर्द की अनदेखी न कर
अब बरदाश्त की ताब नहीं रही मेरी जान! क्यों मुझे सीने से नहीं लगा लेता

मोमबत्ती की फड़फड़ाती लौ की तरह मैं इश्क़ की आग में हैरान-परेशान फ़िरता हूं
न मेरी आंखों में नींद है, न देह को आराम, न तू आता है न कोई तेरा पैगाम

अचानक हज़ारों तरकीबें सूझ गईं मेरी आंखों को और मेरे दिल का क़रार जाता रहा
किसे पड़ी है जो जा कर मेरे पिया को मेरी बातें सुना आये

विरह की रात ज़ुल्फ़ की तरह लम्बी, और मिलन का दिन जीवन की तरह छोटा
मैं अपने प्यारे को न देख पाऊं तो कैसे कटे यह रात)
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