मन के किसी कोने मैं ,पलकों पे रहती है ,
पर मुश्किल से होटों पे आती है .आकांक्षा
कभी झूटी सी कभी अधूरी होती है ,
जब भी सच्ची ,पूरी होती है आकांक्षा
कभी निर्मल , छलि कभी ,कोमल कभी ,
भोली कभी होती है आकांक्षा
कभी स्वार्थ है ,कभी है इच्छा ,कभी विव्बस्ता ,
कभी स्वेच्छा होती है आकांक्षा
कभी बूँद है , कभी है सागर ,
कभी कहीं चुप कहीं ऊजागर होती आकांक्षा
नही कोई प्रवीण जो इनको रोक सके ,
अंत हीन होती है ,ऐसी होती है
*****************ऐसी होती है आकांक्षा **************************
4 comments:
बहतु खूब.लिखते रहिए. शुर्किया.
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यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर
सादर अभिवादन
आपकी शाक्त रचना के लिए बहुत बधाई मित्र
आनंद आ गया बंधु
आपसे परिचय होना अच्छा रहा
चलिए अपने परिचय के लिए
एक कविता भे रहा हूँ इसे आज ही मैने अपने ब्लॉग पे पोस्ट किया है
और हाँ बंधु मेरा ब्लॉग भी एक बार देखिए गा ज़ाऊर , क्यों , देखेंगे ना..
और मेरे ब्लॉग मे आपको कोई दम वाली बात लगती है तो बड़ा अच्छा लगेगा यदि मेरे ब्लॉग को अगर आप अपनी ब्लॉग लिस्ट मे जगह देंगे
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए
यानि
वन का वृक्ष
खेत की मेढ़
नदी की लहर
दूर का गीत , व्यतीत
वर्तमान में उपस्थित
भविष्य में
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिये
तेज गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कडाके की सर्दी
खून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी
मैं जो हूँ ,
मुझे वही रहना चाहिये
मुझे अपना होना
ठीक ठीक सहना चाहिए
तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिए
बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फूल बनने के लिए
मगर मैं
कबसे
ऐसा नहीं कर रहा हूँ
जो हूँ वही होने से डर रहा हूँ ..
DU UDAY MANI KAUSHIK
http://mainsamayhun.blogspot.com
शुक्रिया डॉ. साहब ,
प्रवीण जी आपकी आकांक्षा भी बहुत अच्छी लगी। शुक्रिया ब्लाग पर आने का। शुभकामनाओं सहित,
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