Sunday, August 10, 2008

जो बीत गई सो बात गेइ

जीवन मैं एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन् को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूते
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गेइ
जीवन मैं वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी बल्ल्रियां
जो मुरझाई वोह फ़िर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन मैं मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय के आँगन को देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिटटी मैं मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालो पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।अपनें भावों को बखूबी अभिव्यक्त किया है।

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