Monday, August 11, 2008

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा


भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा

2 comments:

Puja Upadhyay said...

nice collection...please put the name of the original author,many people may take the poems as yours.
and i see that you write poems...a good beginning and best wishes for more to come.
and remove hte word verification, it puts off people and they may not comment.

Udan Tashtari said...

वाह जी, बहुत जबरदस्त!! वाह! बधाई.

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