Thursday, August 7, 2008
"आदर्श प्रेम"
आयिए मेरे अंदर कविता की प्रति रुजान पैदा करने वाले इस महान रचना कार की इस अदभुद क्रति की पंक्ति को पड़ते है , किसी भी रूप मैं प्रेम का आदर्श है ये .........
"आदर्श प्रेम"
प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना कया |
अपने को अपर्ण करना पर
और को अपनाना क्या |
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या |
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या |
ले लेना सुगन्ध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या |
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या |
त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या |
देकर ह्रदय ह्रदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या |
Labels:
हरिबंस राय बच्चन
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