"ख़ुद मैं ख़ुद को ढूँढता फ़िर न मिला कोई हल, फ़िर वही है प्यास जगी फ़िर खड़ा ब्याकुल "
बहुत खूब
ये पंक्तियाँ सुन्दर तो हैं पर आपकी नहीं हैं। जब भी किसी दूसरे का प्रकाशित करें, उनका नाम भी दें। सस्नेह
इन पंक्तियों के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी का नाम साथ में डाल दें. यह एक स्वस्थ परंपरा है.
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बहुत खूब
ये पंक्तियाँ सुन्दर तो हैं पर आपकी नहीं हैं। जब भी किसी दूसरे का प्रकाशित करें, उनका नाम भी दें। सस्नेह
इन पंक्तियों के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी का नाम साथ में डाल दें. यह एक स्वस्थ परंपरा है.
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