Wednesday, October 1, 2008

जब किसी से कोई गिला रखना


जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना


यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना


घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना


मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना


मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

3 comments:

mehek said...

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना


मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना
wah bahut khub

manvinder bhimber said...

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना


मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

ati sunder

Udan Tashtari said...

निदा फाजली साहब की यह गजल मुझे बहुत पसंद है. आभार.

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