क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है
चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है
रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है
शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है
अब शहज़ाद ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है
Monday, August 18, 2008
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6 comments:
बहुत उम्दा,आनन्द आ गया.
khoobsoorat...khas taur se
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है
likhte rahein
bahut khub
@ pooja ji, yah फ़रहत शहज़ाद साहब kee rachanaa hai...
अब शहज़ाद ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है, फ़रहत शहज़ाद साहब की और बहुत ही खुब गाया है, महान ग़जल गायक मेहदी हसन साहब ने ... वाह बहुत खुब
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