मन के दरिया मैं मासूम सी लहर उठी है |
पतझड़ मैं उड़ते पत्तों सी तुम यादों के आंगन को भर जाती हो ||
मैं कलियों को चूमता हूँ तुम्हे सोचकर ,और
तुम मुझे सोचकर बालों मैं फूलों को सजाती हो |
मुझे आसमान पे बस एक चांदनी नज़र आती है
तुम चाँद के दाग पर बस नजरें टिकती हो||
मैं पुकारता हूँ की सारा जहाँ सुन सके |
तुम कानों मैं हल्के से बुदबुदाती हो ||
मैं नुमाइश करता हूँ पागलपन की हद तक
और तुम चुप रहती हो छुपाती हो ||
मैं सब कहता हूँ पर जता नहीं पता |
और तुम कुछ नहीं कहती फिर सब जताती हो ||
कोन हो तुम , कोई तुम्हारा नाम तो पूछे |
क्यों किसी अनजान को इतना सताती हो ||