Friday, December 11, 2009
मतवाली कलि
था भवरा नादाँ मगर फ़िर भी इंकार वो करता था /
भन-भन करता बाग़ों मैं कलियों के पीछे फिरता था //
अधखिली थी कलि मगर, थी कलि बड़ी मतवाली /
कहती है खिलने तो ,देखो सागर है मेरा खाली//
भवरें ने सागर को भरने की फ़िर हर कोशिश कर डाली /
हो उदास भवरें ने फ़िर सागर मैं आँखों से एक बूँद मिला दी //
कहे कलि खिलकर भवरें से मिलकर ,
था बागवान ने सींचा हरपल, थी इसीलिए मतवाली /
था सागर मेरा भरा हुआ ,बस एक बूँद थी खाली //
भवरा वो ले गया उड़कर खिली कलि मतवाली /
जो बड़े जतन से सींच -सींच कर बागवान ने पाली //
Labels:
अपनी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
सुंदर एवं प्रभावी विचार।
------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
Post a Comment