Wednesday, October 8, 2008

"दो पल "


आती साँसों मैं एक जाती सासों मैं एक पल
दो पल बीत रहे हैं आज ,जो बीत गए थे कल|

बीते पल की बात नही होती ,होती दो पल की यादें हैं |
खो जाता हैं वो पल भी जिसमें न खोने की कसमें खाते हैं ||

दो पल कसे अलबेले जो अब तक भूल न पाए |
बनके फूल खिले हर सावन दो पल , फ़िर पतझड़ मैं झड़ जायें ||

ऐसे दो पल भूल न पाए कैसे थे वो पल |
अभी तो सदियों याद करोगे कहते हैं दो पल ||

रात अकेली दिन अकेला , उन दो पल की राह निहारे |
मिल जाए दिन रात से पल मैं , दो पल दिन को रात बना दें||

दो पल आज नही आए , क्या नही आयेंगे कल |
रात मैं चुपके से आ जाते , लोरी गाते दो पल ||

नही प्रवीण कोई , अलग कर सका साथ रहे दो पल |
एक पल उठती पलकों का , झुकती पलकों का एक पल ||

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

दो पलों में आपने पूरी जिंदगी की दास्ताँ बयां कर दी है...बेहद खूबसूरत रचना...बधाई...
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।

रंजू भाटिया said...

रात अकेली दिन अकेला , उन दो पल की राह निहारे |
मिल जाए दिन रात से पल मैं , दो पल दिन को रात बना दें

बहुत खूब

mehek said...

रात अकेली दिन अकेला , उन दो पल की राह निहारे |
मिल जाए दिन रात से पल मैं , दो पल दिन को रात बना दें||

दो पल आज नही आए , क्या नही आयेंगे कल |
रात मैं चुपके से आ जाते , लोरी गाते दो पल ||
bahut hi badhiya badhai

shama said...

Ab sabne jo kaha wahee kehne jaa rahee hun....sirf yahee rachna nahee, blogpe aurbhee padha...behad achha aur bhavuk laga!
Shubhkamnayon sahit swagat hai!

शोभा said...

बीते पल की बात नही होती ,होती दो पल की यादें हैं |
खो जाता हैं वो पल भी जिसमें न खोने की कसमें खाते हैं ||

दो पल कसे अलबेले जो अब तक भूल न पाए |
बनके फूल खिले हर सावन दो पल , फ़िर पतझड़ मैं झड़ जाय
आपका स्वागत है.

श्यामल सुमन said...

वाह। अच्छी भावाभिव्यक्ति। आपकी रचना पढने के बाद दो त्वरित पंक्तियाँ मेरी तरफ से-

पल दो पल का यह जीवन है, जीना है हर पल।
न सोचो हुआ था कल क्या, फिर क्या होगा कल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर अल्फाजों और ख्यालातों से सजी रचना बधाई आपका चिठ्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है
बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

Amit K Sagar said...

बहुत बढ़िया. खूबसूरत.

Akhilesh Shukla said...

पाराशर जी आपकी कविताएं बहुत ही अच्छी हैं। क्यों न आप इन्हें प्रकाशन के लिए भेंजें। यदि आप पत्रिकाओं के पते चाहते हैं तो मेरे ब्लाग पर पधारें पते के साथ साथ पत्रिकाओं की समीक्षा भी पॄ सकेगें
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
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