Wednesday, March 25, 2009
विरहन
एरी सखी का से कहों मन की बतियाँ
सूने मोरे दिन पुरे , सूनी मोरी रतियाँ |
तोसे मिलूँ तो कहूँ मैं विरहा की बातें
कसे काटें मोरे दिन कैसे मोरी रातें |
सुनरी पवन अगर पी तुझको मिले
कहना भली हूँ पर जी न लगे|
बरसेगा सावन आग मन मैं लगेगी
तरसेगी विरहा प्यासी , बूंदों से जलेगी |
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अपनी कलम से
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5 comments:
एरी सखी का से कहों मन की बतियाँ
सूने मोरे दिन पुरे , सूनी मोरी रतियाँ |
तोसे मिलूँ तो कहूँ मैं विरहा की बातें
कसे काटें मोरे दिन कैसे मोरी रातें
Praveen ji,
bhot accha geet birha ka....!!
विरहा की स्थिति का सही चित्रण ... बधाई।
सुनरी पवन अगर पी तुझको मिले
कहना भली हूँ पर जी न लगे|
वाह, सुन्दर कविता, सुन्दर भाव..............
बधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
बेहतरीन रचना ....आपकी लेखनी औरों से जुदा है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
praveen ji 1 kaam karen antre ki line main aag ki jagah agni kar de, dhun banane main asani hogi.
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