Sunday, July 26, 2009
फ़िर क्यूं दिल घबराता है
सपने कांच टुकडों से पलकों को घायल करते हैं
सुखी आँखों मैं फ़िर आंसूं बनकर क्या बहता है //
रोती हैं आँख या ये दिल रोता है
कैसा रिश्ता ये दिल का पलकों से होता है //
कोन से झरने का पानी ये मन की प्यास बुझाता है /
चोट कही न आए नज़र फ़िर कोन ये दर्द जगाता है //
है नादाँ , हटी ये बात किसी की न माने /
फ़िर भूल के सबकुछ खुश हो जाए कोन इसे समझाता है / /
पा लेता है सबकुछ जो चाहे वो कर के माने /
मिल जाता है सबकुछ , तो फ़िर क्यूं दिल घबराता है //
खा लेता है कस्में फ़िर तोड़ उन्हें वो जाता है /
मेरी बात सही कहता फ़िर क्यूं पीछे पछताता है //
साथ चले दुनिया सारी और भीड़ ही भीड़ नज़र आए /
क्यूं डरता है कभी- कभी , फ़िर ये किस से घबराता है //
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अपनी कलम से
Tuesday, July 7, 2009
सपनो की रेत
मजबूर हम इतना हुए की दूर तुमसे हो गए/
पलकों पे जो तेरे ख़ाब थे, वो आंसुओं मैं बह गए//
क्यूं नज़ारे खामोश हुए और फिजायें गुमसुम चली जा रही है/
मेरी सदा जो कह सके ,वो लब्ज़ गूंगे हो गए , //
अब थामकर किस्मत का हाथ मैं सफर पर चल पड़ा /
मेने बनाये थे जो मंजिलों के रास्ते, चलते -चलते रास्ते मैं, रास्ते बदल गए //
प्यार के मोती सभी भरे थे दोनों हाथ से ,था आसमान भी भर लिया /
मुट्ठी खुली जो एक दिन , हाथों मैं हाथ रह गए //
कल थी महफिलों की शाम, भीड़ ही भीड़ बेशुमार थी/
आज मेरा साया और कुछ यादों के साये रह गए //
सपनो की रेत से अपने ही आँचल मैं घरोंदे बना लिए /
खुशियों के आँसू आए तो सरे घरोंदे डाह गए //
सुनते -सुनते दास्ताँ किसी की ,अपनी सी लगी/
कुछ अपनी सुनाई तुझे तो , यार तेरी कह गए //
आज तक मैं हूँ मुझे मुझ पे बड़ा गुमान था /
ख़ुद से नज़र मिली तो ख़ुद बेजुबान हो गए //
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